बड़ी कवितायें Long Poems


आखिर कब तक हम

आखिर कब तक हम अपने पूर्वजों द्वारा,
रोपित फसल ही खाते रहेंगे,
आखिर कब तक हम उनके अच्छे कार्यों की,
बस जय जय कार लगते रहेंगे,

महाराणा ,पृथ्वी,कुंवर सिंह, और बहुत से बड़े हैं नाम,
देश और कौम की खातिर,त्याग दिए जिन्होंने प्राण,
हाँ, उनकी जय जय कार लगाने में है हम सबकी शान,
पर आज का ये युग अब फिर मांग रहा हमसे बलिदान,

आखिर कब तक आपस में लड़ लड़ कर ,
अपना सम्मान लुटवाते रहेंगे,
आखिर कब तक हम आपसी फूट के कारण,
अपना सर्वस्व गंवाते रहेंगे,,

अब तो जागो मेरे रणबांकुरों,तुम ऐसा कुछ कर जाओ,
उनकी जय जय कार करो,अपनी भी जय करवाओ,
जैसे हम उनके वंशज करते सम्मान से उनको याद,
उसी तरह सम्मान करें हमारा, सब इस जग से जाने के बाद ,

हम सब मिलकर ''अमित'' कर जाएँ ऐसा कारनामा,
जिस से सारे गर्व से बोलें ''जय जय वीर राजपूताना''

राजपूतो का सबसे प्यारा आभूषण तलवार
    आज तुम्हे चिंघाड़ की याद कराता हूँ
    आज तुम्हे राजपूतो के सबसे प्यारे आभूषण
    तलवार के बारे में बताता हूँ....
    ये तो युगों सेस्वामीभक्ति करती रही
    अपने होठो से दुश्मन का रक्तपात करती रही
    अरबो को थर्राया इसने,पछायो को तड़पाया भी
    गन्दी राजनीती से लड़ते हुए भी हमारा सम्मान करती
    रही ये ही तो राजपूतो का असली अलंकार है
    इसी से तो शुरू राजपूतो का संसार है
    इसके हाथ में आते ही शुरू संहार है
    इसके हाथ में आते ही दुश्मन के सारे शस्त्र बेकार है
    जीवो के बूढा होने पर उसे तो नहीं छोड़ते
    तो तलवार को क्यों छोड़ दिया
    बूढे जीवो को जब कृतघ्नता के साथ सम्मान से रखते हो
    तो मेरे भाई तलवार ने कौन सा तुम्हारा अपमान किया इसी ने हमेशा है ताज दिलाये
    इसी ने दिलाया अनाज भी
    जब भी आर्यावृत पर गलत नज़र पड़ी
    तब अपने रोद्र से इसने दिलाया हमें नाज़ भी इसी ने दुश्मन के कंठ में घुसकर
    उसकी आह को भी रोक दिया
    जो आखिरी बूंद बची थी रक्त की
    उसे भी अपने होठो से सोख लिया मैं तो सच्चा राजपूत हूँ
    इतनी आसानी से कैसे अपनी तलवार छोड़ दूँ
    मैं तो क्षत्राणी का पूत हूँ
    मैं कैसे इस पहले प्यार से मुह मोड़ लू


महाराणा की ललकार
    उठो क्षत्रियो जागो तुम, समाज की ये पुकार है.!
    एक साथ फिर जुट जाओ तुम, महाराणा की ललकार है ..!!
    बरसों से की है हम ने, इस वतन की रक्षा,
    त्याग और बलिदानों की है, विरासत में दीक्षा,
    देश धरम हित देह त्यागकर, मिलाती है मुमुक्षा.,
    मिटटी पर मर मिटनेवाले, हम ही सच्चे सरदार है.!
    एक साथ फिर जुट जाओ तुम, राणा की ललकार है.!
    कुप्रथासे छेड़े जंग हम, यही मांगते है भिक्षा,
    सबलता और एकता की, है हमें तितिक्षा.,
    करनी है अब हम को ही, संस्कृति की सुरक्षा,
    भेदभाव को भुलाकर आओ, क्षात्र शक्ति का एल्गार है.!
    एक साथ फिर जुट जाओ तुम, राणा की ललकार है.!!

क्षत्रिय एकता
    कब तलक सोये रहोगे, सोने से क्या हासिल हुआ,
    व्यर्थ अपने वक्त को खोने से क्या हासिल हुआ,
    शान और शौकत हमारी जो कमाई ''वीरों'' ने वो जा रही,
    अब सिर्फ बैठे रहने से क्या हासिल हुआ,
    सोती हुई राजपूती कौम को जगाना अब पड़ेगा,
    गिर ना जाए गर्त में, ''वीरों'' उठाना अब पड़ेगा,
    बेड़ियाँ ''रुढिवादिता'' की पड़ी हुई जो कौम में,
    उन सभी बेड़ियों को तोडना हमें अब पड़ेगा,
    संतान हो तुम उन ''वीरों'' की वीरता है जिनकी पहचान,
    तेज से दमकता मुख और चमकती तलवार है उनका निशान,
    वीरता की श्रेणी में ''क्षत्रियों'' का पहला है नाम,
    झुटला नहीं सकता जमाना, इथिहस है साक्षी प्रमाण,
    प्रहार कर सके ना कोई अपनी आन-बाण-शान पर,
    जाग जाओ अब ऐ ''वीरो'' अपने ''महाराणा'' के आवहान पर,
    शिक्षा और संस्कारों की अलख जागते अब चलो,
    राह से भटके ''वीरों'' को संग मिलते अब चलो,
    फूट पड़ने ना पाए अपनी कौम में अब कभी,
    ''क्षत्रिय एकता'' ऐसी करो के मिसाल दें हमारी सभी,
    कोई कर सके ना कौम का अपनी उपहास,
    आओ ''एक'' होकर रचें हम अपना स्वर्णिम इतिहास
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    क्षत्रिय
      क्षत्रियों की छतर छायाँ में, क्षत्राणियों का भी नाम है |
      और क्षत्रियों की छायाँ में ही, पुरा हिंदुस्तान है |
      क्षत्रिय ही सत्यवादी हे, और क्षत्रिय ही राम है |
      दुनिया के लिए क्षत्रिय ही, हिंदुस्तान में घनश्याम है |
      रजशिव ने राजपूतों पर किया अहसान है |
      मांस पक्षी के लिए दिया, क्षत्रियों ने भी दान है |
      राणा ने जान देदी परहित, हर राजपूतों की शान है |
      प्रथ्वी की जान लेली धोखे से, यह क्षत्रियों का अपमान है |
      हिन्दुओं की लाज रखाने, हमने देदी अपनी जान है |
      धन्य-धन्य सबने कही पर, आज कहीं न हमारा नाम है |
      भडुओं की फिल्मों में देखो, राजपूतों का नाम कितना बदनाम है |
      माँ है उनकी वैश्या और वो करते हीरो का काम है |
      हिंदुस्तान की फिल्मों में, क्यो राजपूत ही बदनाम है |
      ब्रह्मण वैश्य शुद्र तीनो ने, किया कही उपकार का काम है |
      यदि किया कभी कुछ है तो, उसमे राजपूतों का पुरा योगदान है


    घास री रोटी
      घास री रोटी ही, जद बन बिलावडो ले भाग्यो
      नान्हो सो अमरियो चीख पड्यो, राणा रो सोयो दुख जाग्यो
      अरे घास री रोटी ही……
      हुँ लड्यो घणो, हुँ सहयो घणो, मेवाडी मान बचावण न
      हुँ पाछ नहि राखी रण म, बैरयां रो खून बहावण म
      जद याद करुं हल्दीघाटी, नैणां म रक्त उतर आवै
      सुख: दुख रो साथी चेतकडो, सुती सी हूंक जगा जावै
      अरे घास री रोटी ही……
      पण आज बिलखतो देखुं हूं, जद राज कंवर न रोटी न
      हुँ क्षात्र धरम न भूलूँ हूँ, भूलूँ हिन्दवाणी चोटी न
      महलां म छप्पन भोग झका, मनवार बीना करता कोनी
      सोना री थालयां, नीलम रा बजोट बीना धरता कोनी
      अरे घास री रोटी ही……
      ऐ हा झका धरता पगल्या, फूलां री कव्ठी सेजां पर
      बै आज रूठ भुख़ा तिसयां, हिन्दवाण सुरज रा टाबर
      आ सोच हुई दो टूट तडक, राणा री भीम बजर छाती
      आँख़्यां म आंसु भर बोल्या, म लीख़स्युं अकबर न पाती
      पण लिख़ूं कियां जद देखूँ हूं, आ रावल कुतो हियो लियां
      चितौड ख़ड्यो ह मगरानँ म, विकराल भूत सी लियां छियां
      अरे घास री रोटी ही…… 


    चेतक
      चढ़ चेतक पर तलवार उठा,
      रखता था भूतल पानी को।
      राणा प्रताप सिर काट काट,
      करता था सफल जवानी को॥

      कलकल बहती थी रणगंगा,
      अरिदल को डूब नहाने को।
      तलवार वीर की नाव बनी,
      चटपट उस पार लगाने को॥

      वैरी दल को ललकार गिरी,
      वह नागिन सी फुफकार गिरी।
      था शोर मौत से बचो बचो,
      तलवार गिरी तलवार गिरी॥

      पैदल, हयदल, गजदल में,
      छप छप करती वह निकल गई।
      क्षण कहाँ गई कुछ पता न फिर,
      देखो चम-चम वह निकल गई॥

      क्षण इधर गई क्षण उधर गई,
      क्षण चढ़ी बाढ़ सी उतर गई।
      था प्रलय चमकती जिधर गई,
      क्षण शोर हो गया किधर गई॥

      लहराती थी सिर काट काट,
      बलखाती थी भू पाट पाट।
      बिखराती अवयव बाट बाट,
      तनती थी लोहू चाट चाट॥
      क्षण भीषण हलचल मचा मचा,
      राणा कर की तलवार बढ़ी।
      था शोर रक्त पीने को यह,
      रण-चंडी जीभ पसार बढ़ी॥ 
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    क़ब तक.???
      कितना रक्त बहाना होगा, अपनी ही इस धरती पर,
      कितने मंदिर फिर टूटेंगे, अपने इस भारत भूमि पर,
      उदासीन बनकर क़ब तक हम, खुद का शोषण देखेंगे,
      क़ब तक गजनी-बाबर मिलकर भारत माँ को लूटेंगे,

      क़ब तक जयचंदों के सह पर, गौरी भारत आएगा,
      रौंद हमारी मातृभूमि को, नंगा नाच दिखायेगा,
      कब तक कितनी पद्मिनी, अग्नि कुंद में जाएंगी,
      अपना मान बचने हेतु, क़ब तक अश्रु बहायेंगी,
      क़ब तक काशी और अयोध्या, हम सब को धिक्कारेंगे,
      क़ब तक सोमनाथ और मथुरा की छाती पर, गजनी खंजर मारेंगे
      कितनी नालान्दाओं में खिलजी वेद पुराण जलाएंगे,
      कितना देखेंगे हम तांडव, क़ब तक शीश कटायेंगे..??? 


    चेतक निराला
      रण बीच चौकड़ी भर-भर कर चेतक बन गया निराला था,
      राणाप्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था,
      जो तनिक हवा से बाग हिली लेकर सवार उड जाता था,
      राणा की पुतली फिरी नहीं तब तक चेतक मुड जाता था,
      गिरता न कभी चेतक तन पर राणाप्रताप का कोड़ा था,
      वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर वह आसमान का घोड़ा था,

      था यहीं रहा अब यहाँ नहीं वह वहीं रहा था यहाँ नहीं,
      थी जगह न कोई जहाँ नहीं किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं,
      निर्भीक गया वह ढालों में सरपट दौडा करबालों में,
      फँस गया शत्रु की चालों में बढते नद सा वह लहर गया,
      फिर गया गया फिर ठहर गया,
      बिकराल बज्रमय बादल सा अरि की सेना पर घहर गया,
      भाला गिर गया गिरा निशंग हय टापों से खन गया अंग,
      बैरी समाज रह गया दंग घोड़े का ऐसा देख रंग. 



    राजपूती- चोला

      समय के साथ -साथ जमाना बदल जाता है,
      ''खानपान'' और ''रहन-सहन'' पुराना बदल जाता है,
      वक़्त की रफ़्तार में शख्स रंग बदल जाता है,
      मत बदलो ''राजपूती-चोला'', जीने का ढंग बदल जाता है,,

      ''राजपूती-चोला'' पहन कर गर्व महसूस होता है,
      अपने सर पर वीर पूर्वजों का असर महसूस होता है.
      साफा बंधकर जब चलते हैं वीर राजपूत,
      उनको अपने बाने पर फकर महसूस होता है,,

      ज़माने के साथ बदलना, नहीं कोई गलत बात,
      लेकिन उन चीजों को न छोड़ो जो हैं हमारे पूर्वजों की सौगात,,
      इस बात पर करना सभी गहन सोच-विचार,
      हमारा आचरण,आवरण उचित हो और अच्छा रहे व्यवहार,,

      अपने रीति रिवाजों को बिलकुल मत भुलाना,
      रूढ़ियाँ हैं तोडनी पर अच्छे विचारों को है अपनाना,,
      हमारे ये रीति रिवाज सितारों की तरह हैं दमकते,
      इसीलिए तो राजपूत सबसे अलग है चमकते,

      हम ऐरे गैरे नहीं, ''राजपूत'' हैं, इसका रखो ध्यान,
      अपने शानदार ''राजपूती-चोले'' का हमेशा करो सम्मान,,


    सली हीरो

      हम सबके सर पे महाराणा जी का हाथ,
      हम ''राजपूतों'' ही है कुछ अलग ही बात,
      पता नहीं क्यूं कुछ लोगभटक हैं जाते,
      अपनी जगह किसी हीरो हेरोइन की फोटो लगाते,
      अरे उनकी हमारे सामने क्या है औकात,
      अपनी जगह उन्हें दे दो, यह भी हुई कोई बात,
      हम तो हैं राजसी, पैदायशी होते हैं रौबीले,
      ''अमित'' की बात सुन लो ऐ मेरे राजपूत वीरों,
      अपनी जगह न किसी को देना, हम ही हैं देश के असली हीरो..!!

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      राजपूतों की ज्वाला

        राजपूतों की ''ज्वाला'' कभी ठंडी नहीं होती,
        अदम्य शूरवीरों की यही तो पहचान है होती,
        यदि यह ''ज्वाला'' राजपूतों में न होती,
        तो भारत के इतिहास में ना होते अनमोल मोती,
        राजपूतों की आन-बाण-शान, है ये ''ज्वाला',
        प्रताप और पृथ्वी जैसे वीरों की पहचान है ये ''ज्वाला''.

        इतिहास के कुछ पन्नो पे हमको मलाल है,
        जिनमें जैचंद जैसे कायरों की मिसाल है,
        उसने राजपूती कौम का सर शर्म से झुकवाया,
        ''ज्वाला'' को आन पे रख दुश्मनों से हाथ मिलाया,

        अगर पृथ्वीराज में ये ''ज्वाला'' का शोला ना भड़कता,
        तो बिना देखे उसका तीर सुलतान को ना लगता,
        ये तो इसी राजपूती ''ज्वाला'' का कमाल था,
        ''चार बांस-चौबीस गज-आठ अंगुल'' दुरी से गौरी का किया कम तमाम था,

        हे राजपूत वीरों, ना ठंडी पड़ने देना कभी ये ''ज्वाला'',
        क्योंकि असली राजपूतों की पहचान है ये ''ज्वाला'',
        राजपूतों की आन-बाण-शान, है ये ''ज्वाला'',
        प्रताप और पृथ्वी जैसे वीरों की पहचान है ये ''ज्वाला'',
        जय महाराणा..!!!
        बुलंद करो राजपुताना...!!!! 



      राजपूत आया


        रात चौंधाई, दिन घबराया,
        जब इस धरती पर राजपूत आया.!!
        धरती भी डोली, आई सूरज पर भी छाया,
        जब इस धरती पर राजपूत आया.!!

        पहाडो को झुकाया, मौत को भी तड़पाया,
        जब इस धरती पर राजपूत आया.!!
        शौर्य को लड़ाया, शौर्य को हराया,
        जब इस धरती पर राजपूत आया.!!

        दुश्मन घबराया, दुश्मन को हराया,
        दुश्मन के किले की नींव को हिलाया,
        जब इस धरती पर राजपूत आया.!!
        समाज को प्रकाश दिखाया,
        समाज को न्याय दिलाया,
        जब इस धरती पर राजपूत आया.!!

        दुश्मन की आँखों में आया डर का साया,
        शेर भी उस दहाड़ से घबराया,
        जब इस धरती पर राजपूत आया.!!

        इनके क्रोध को न जगाना,
        इनके धैर्य को न डगाना,
        क्योंकि तब- तब प्रिलय आई है,
        जब- जब इस धरती पर राजपूत आया.!! 
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    एक राजपूत क्या है।।

    अक्शर अचाई का रास्ता गंदिगी से हो कर गुजरता है।
    अगर कुछ अच्हा करना है तो गंदिगी को ख़तम करना होगा।।
    कुछ करना है अगर तो कीचड़  में खुदना ही होगा।
    अगर किसी को न्याय देना है तो आज लड़ना ही होगा।।
    अगर अब नहीं आगे बढ़ेंगे तो ज़िन्दगी भर लाइन में लगना ही होगा।
    अगर आज कीचड़ साफ नहीं किया तो कल दलदल में फसना ही होगा 
    अगर आज कुछ नहीं किया तो कल रोना ही होगा।।
    अगर अब बैठे रह गए तो ज़िन्दगी भर रोना होगा।
    अगर आज आंखे नहीं खोली तो ज़िन्दगी भर आंखे बंद रखनी होगी।।
    अगर आज कान बंद कर लिए तो ज़िन्दगी भर शोर सहेना होगा।
    अगर आज नहीं जागे दोस्तों तो ज़िन्दगी भर सोना पड़ेगा ।।
    उठो जागो अन्याय के आगे आज तलवार उठालो।
    तोड़ दो आज सारी ज़ंजीरो कोबता दो इन चोरो को।
    बता दो इस दुनिया को की हम रणवीर है।
    बता दो की हम रंजित है।।
    हम आज भी वही ताकत रखते है।
    अपनी प्यास पानी से नहीं बल्कि शोनित से बुजाते है।
    आज भी हम जब ललकार उठाते है तो शेर भी अपनी दुम दबाते है।।
    तोड़ दो सारी ज़ंजीरो कोतोड़ दो इन बंधन कोआज जीत्लो इस दुनिया को।
    सिखा दो इस दुनिया को की सिधांत क्या होते है।
    आज बता दो की आदर्श क्या है।।
    दिखा दो सबको की सब्दो के मोल क्या होते है 
    दिखा दो सबको की राज केसे करते है 
    सिखा दो सबको की जीवन मृत्यु क्या है।
    आज बता दो इनको की एक राजपूत क्या है।
    आज बता दो इनको की एक राजपूत क्या है।।
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    आज में तलवार उठाता हूँ

आज या नयी श्रिस्ति रचूंगाया इस प्राण का दान दूंगा
आज में युद्ध का शंखनाथ बजाता हूँ!आज में तलवार उठाता हूँ
ज़िन्दगी जियूँगा तोह अपने उस्सुलो पे
आज माँ चामुंडा की सोगंध खाता हूँ
आज में शंखनाथ  बजाता हूँ
आज में तलवार उठाता हूँ
परवाह नहीं आज किसी की,डर नहीं मृत्युभ का भी
आज नया इतहास  रचता हूँ
आज में तलवार उठाता हूँ
सत्य की लड़ाई में आज प्राण निछावर करूँगा
आज अपने पूर्वजो का सर गर्व से फिर ऊँचा करूँगा
आज में तलवार उठाता हूँ
शोर्ये के नए मायने रचूंगा
आज केसरी रंग में खुद को रंगुंगा
आज में अँधेरे का सीना चीर सत्य को रोशन करूँगा
आज में तलवार उठाता हूँ
पर्वत हो चाहे कितना भी ऊँचा
आकाश की छाती चीर आज संहार करूँगा
आज में युद्ध का शंखनाथ बजाता हूँ
आज में तलवार उठाता हूँ
सत्य को आज रोशन करुँग
आज नया इतहास रचूंगा
या गौरव रथ हासिल करूँगा
या हजारो वीरो की गुमनामी में खो जाऊंगा
मगर आज में नहीं जुकुंगा
मृत्युभ या लक्ष्य किसी एक को हसील करूँगा
आज में तलवार उठाता हूँ
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राजपूत आया 

रात चौंधाई, दिन घबराया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!
धरती भी डोली, आई सूरज पर भी छाया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!
पहाडो को झुकाया, मौत को भी तड़पाया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!
शौर्य को जगाया
शौर्य को लड़ाया
शौर्य को हराया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!
दुश्मन घबराया
दुश्मन को हराया
दुश्मन के किले की नींव को हिलाया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!

समाज को प्रकाश दिखाया
समाज को बचाया
समाज को न्याय दिलाया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!

धरती पर एक समानता को फैलाया
आर्यव्रत की शान को बढाया
तलवारों के स्तंभों से प्यार का पुल बनाया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!

औरत को समाज में मान दिलाया
कमजोर भी मजबूत हालत में आया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!

अग्नि को लोगो ने ठंडा पाया
समंदर को भी लोगो ने जमता पाया
जब इस धरती पर राजपूत आया

दुश्मन की आँखों में आया डर का साया
शेर भी उस दहाड़ से घबराया
जब इस धरती पर राजपूत आया !!

इनके क्रोध को न जगाना
इनके धैर्य को न डगाना
क्योंकि तब- तब प्रिलय आई है
जब- जब इस धरती पर राजपूत आया
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    हे क्षत्रिय!

    हे क्षत्रिय!
    उठ! अपनी निँद्रा को त्याग..!
    ले ईस नये रण संग्राम मे भाग!
    भरकर अपनी भुजाओँ मेँ दम....
    मिटा दे लोगोँ के भ्रम...,
    देख आज तु क्योँ है?
    अपने कर्तव्योँ से दुर!
    कर विप्लव का फिर शंखनाद,
    उठा तेरी काया मे फिर रक्त का ज्वार!

    हे क्षत्रिय! उठ! अपनी निँद्रा को त्याग..!
    देख शिखाओँ को,
    उनसे उठ रहा है धुआँ..,
    उठ खडा हो फिर 'अक्षय' तु,
    कर दुष्टोँ का संहार,
    निती के रक्षणार्थ बन तु पार्थ!
    हे क्षत्रिय! उठ! अपनी निँद्रा को त्याग..!

    कर विप्लव का फिर शंखनाद..
    याद कर अपने पुरखोँ के बलिदान को..,
    चल उन्ही के पथ पर,
    कर निर्माण एक नया ईतिहास,
    जिन्होने दिए तुम्हारे लिए प्राण...,
    कुछ कर कार्य ऐसा के बढे उनका सन्मान..,
    हे क्षत्रिय! उठ! अपनी निँद्रा को त्याग..!

    'अक्षय' खडा ईस मोड पर, रहा है तुझे पुकार...,
    करा उसे अपने अंदर के..,
    एक क्षत्रिय का साक्षात्कार!
    हे क्षत्रिय! उठ! अपनी निँद्रा को त्या
     
    ग..!

13 comments:

  1. बहुत सुंदर हुक्म

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  2. आज तुम्हे चिंघाड़ की याद कराता हूँ
    आज तुम्हे राजपूतो के सबसे प्यारे आभूषण
    तलवार के बारे में बताता हूँ....
    ये तो युगों सेस्वामीभक्ति करती रही
    अपने होठो से दुश्मन का रक्तपात करती रही
    अरबो को थर्राया इसने,पछायो को तड़पाया भी
    गन्दी राजनीती से लड़ते हुए भी हमारा सम्मान करती
    रही ये ही तो राजपूतो का असली अलंकार है
    इसी से तो शुरू राजपूतो का संसार है
    इसके हाथ में आते ही शुरू संहार है
    इसके हाथ में आते ही दुश्मन के सारे शस्त्र बेकार है
    जीवो के बूढा होने पर उसे तो नहीं छोड़ते
    तो तलवार को क्यों छोड़ दिया
    बूढे जीवो को जब कृतघ्नता के साथ सम्मान से रखते हो
    तो मेरे भाई तलवार ने कौन सा तुम्हारा अपमान किया इसी ने हमेशा है ताज दिलाये
    इसी ने दिलाया अनाज भी
    जब भी आर्यावृत पर गलत नज़र पड़ी
    तब अपने रोद्र से इसने दिलाया हमें नाज़ भी इसी ने दुश्मन के कंठ में घुसकर
    उसकी आह को भी रोक दिया
    जो आखिरी बूंद बची थी रक्त की
    उसे भी अपने होठो से सोख लिया मैं तो सच्चा राजपूत हूँ
    इतनी आसानी से कैसे अपनी तलवार छोड़ दूँ
    मैं तो क्षत्राणी का पूत हूँ
    मैं कैसे इस पहले प्यार से मुह मोड़ लू
    जय माता दी
    जय राजपुताना

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  3. आज तुम्हे चिंघाड़ की याद कराता हूँ
    आज तुम्हे राजपूतो के सबसे प्यारे आभूषण
    तलवार के बारे में बताता हूँ....
    ये तो युगों सेस्वामीभक्ति करती रही
    अपने होठो से दुश्मन का रक्तपात करती रही
    अरबो को थर्राया इसने,पछायो को तड़पाया भी
    गन्दी राजनीती से लड़ते हुए भी हमारा सम्मान करती
    रही ये ही तो राजपूतो का असली अलंकार है
    इसी से तो शुरू राजपूतो का संसार है
    इसके हाथ में आते ही शुरू संहार है
    इसके हाथ में आते ही दुश्मन के सारे शस्त्र बेकार है
    जीवो के बूढा होने पर उसे तो नहीं छोड़ते
    तो तलवार को क्यों छोड़ दिया
    बूढे जीवो को जब कृतघ्नता के साथ सम्मान से रखते हो
    तो मेरे भाई तलवार ने कौन सा तुम्हारा अपमान किया इसी ने हमेशा है ताज दिलाये
    इसी ने दिलाया अनाज भी
    जब भी आर्यावृत पर गलत नज़र पड़ी
    तब अपने रोद्र से इसने दिलाया हमें नाज़ भी इसी ने दुश्मन के कंठ में घुसकर
    उसकी आह को भी रोक दिया
    जो आखिरी बूंद बची थी रक्त की
    उसे भी अपने होठो से सोख लिया मैं तो सच्चा राजपूत हूँ
    इतनी आसानी से कैसे अपनी तलवार छोड़ दूँ
    मैं तो क्षत्राणी का पूत हूँ
    मैं कैसे इस पहले प्यार से मुह मोड़ लू
    जय माता दी
    जय राजपुताना

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  4. आज तुम्हे चिंघाड़ की याद कराता हूँ
    आज तुम्हे राजपूतो के सबसे प्यारे आभूषण
    तलवार के बारे में बताता हूँ....
    ये तो युगों सेस्वामीभक्ति करती रही
    अपने होठो से दुश्मन का रक्तपात करती रही
    अरबो को थर्राया इसने,पछायो को तड़पाया भी
    गन्दी राजनीती से लड़ते हुए भी हमारा सम्मान करती
    रही ये ही तो राजपूतो का असली अलंकार है
    इसी से तो शुरू राजपूतो का संसार है
    इसके हाथ में आते ही शुरू संहार है
    इसके हाथ में आते ही दुश्मन के सारे शस्त्र बेकार है
    जीवो के बूढा होने पर उसे तो नहीं छोड़ते
    तो तलवार को क्यों छोड़ दिया
    बूढे जीवो को जब कृतघ्नता के साथ सम्मान से रखते हो
    तो मेरे भाई तलवार ने कौन सा तुम्हारा अपमान किया इसी ने हमेशा है ताज दिलाये
    इसी ने दिलाया अनाज भी
    जब भी आर्यावृत पर गलत नज़र पड़ी
    तब अपने रोद्र से इसने दिलाया हमें नाज़ भी इसी ने दुश्मन के कंठ में घुसकर
    उसकी आह को भी रोक दिया
    जो आखिरी बूंद बची थी रक्त की
    उसे भी अपने होठो से सोख लिया मैं तो सच्चा राजपूत हूँ
    इतनी आसानी से कैसे अपनी तलवार छोड़ दूँ
    मैं तो क्षत्राणी का पूत हूँ
    मैं कैसे इस पहले प्यार से मुह मोड़ लू
    जय माता दी
    जय राजपुताना

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  5. आज तुम्हे चिंघाड़ की याद कराता हूँ
    आज तुम्हे राजपूतो के सबसे प्यारे आभूषण
    तलवार के बारे में बताता हूँ....
    ये तो युगों सेस्वामीभक्ति करती रही
    अपने होठो से दुश्मन का रक्तपात करती रही
    अरबो को थर्राया इसने,पछायो को तड़पाया भी
    गन्दी राजनीती से लड़ते हुए भी हमारा सम्मान करती
    रही ये ही तो राजपूतो का असली अलंकार है
    इसी से तो शुरू राजपूतो का संसार है
    इसके हाथ में आते ही शुरू संहार है
    इसके हाथ में आते ही दुश्मन के सारे शस्त्र बेकार है
    जीवो के बूढा होने पर उसे तो नहीं छोड़ते
    तो तलवार को क्यों छोड़ दिया
    बूढे जीवो को जब कृतघ्नता के साथ सम्मान से रखते हो
    तो मेरे भाई तलवार ने कौन सा तुम्हारा अपमान किया इसी ने हमेशा है ताज दिलाये
    इसी ने दिलाया अनाज भी
    जब भी आर्यावृत पर गलत नज़र पड़ी
    तब अपने रोद्र से इसने दिलाया हमें नाज़ भी इसी ने दुश्मन के कंठ में घुसकर
    उसकी आह को भी रोक दिया
    जो आखिरी बूंद बची थी रक्त की
    उसे भी अपने होठो से सोख लिया मैं तो सच्चा राजपूत हूँ
    इतनी आसानी से कैसे अपनी तलवार छोड़ दूँ
    मैं तो क्षत्राणी का पूत हूँ
    मैं कैसे इस पहले प्यार से मुह मोड़ लू
    जय माता दी
    जय राजपुताना

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  6. बहुत सुंदर हुक्म

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  7. उठो क्षत्रियो जागो तुम, समाज की ये पुकार है.!
    एक साथ फिर जुट जाओ तुम, महाराणा की ललकार है ..!!
    बरसों से की है हम ने, इस वतन की रक्षा,
    त्याग और बलिदानों की है, विरासत में दीक्षा,
    देश धरम हित देह त्यागकर, मिलाती है मुमुक्षा.,
    मिटटी पर मर मिटनेवाले, हम ही सच्चे सरदार है.!
    एक साथ फिर जुट जाओ तुम, राणा की ललकार है.!
    कुप्रथासे छेड़े जंग हम, यही मांगते है भिक्षा,
    सबलता और एकता की, है हमें तितिक्षा.,
    करनी है अब हम को ही, संस्कृति की सुरक्षा,
    भेदभाव को भुलाकर आओ, क्षात्र शक्ति का एल्गार है.!
    एक साथ फिर जुट जाओ तुम, राणा की ललकार है.!!

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  8. जय राजपुताना

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  9. Superb...jay Rajputana ⚔️⚔️⚔️⚔️

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  10. क्षत्रियों की छतर छायाँ में, क्षत्राणियों का भी नाम है |
    और क्षत्रियों की छायाँ में ही, पुरा हिंदुस्तान है |
    क्षत्रिय ही सत्यवादी हे, और क्षत्रिय ही राम है |
    दुनिया के लिए क्षत्रिय ही, हिंदुस्तान में घनश्याम है |
    रजशिव ने राजपूतों पर किया अहसान है |
    मांस पक्षी के लिए दिया, क्षत्रियों ने भी दान है |
    राणा ने जान देदी परहित, हर राजपूतों की शान है |
    प्रथ्वी की जान लेली धोखे से, यह क्षत्रियों का अपमान है |
    हिन्दुओं की लाज रखाने, हमने देदी अपनी जान है |
    धन्य-धन्य सबने कही पर, आज कहीं न हमारा नाम है |
    भडुओं की फिल्मों में देखो, राजपूतों का नाम कितना बदनाम है |
    माँ है उनकी वैश्या और वो करते हीरो का काम है |
    हिंदुस्तान की फिल्मों में, क्यो राजपूत ही बदनाम है |
    ब्रह्मण वैश्य शुद्र तीनो ने, किया कही उपकार का काम है |
    यदि किया कभी कुछ है तो, उसमे राजपूतों का पुरा योगदान है | jai rajputana

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